Sunday, June 24, 2012

हाल-ए-जिंदगी... :-(

ये माहोल अब कुछ अनजाना सा लगता है,
कारवा तेरे बिन अब सुना सा लगता है...


पत्तो कि सरसराहट मे कदमो कि आहट मेहसूस करता हू ,
जब कभी आंख लगे, तुम्हारे ख्वाबो से बेचैन होता  हू...


छज्जो कि मुलाकातो मे जो लबो से शबाब पिया था,
तो अब जुदाई का जहर हलक से उतरता नही...


यादो कि किताब के हर पन्ने पे तुम्हारा नाम लिखा है,
उसे कलमा समझकर रोजाना सजदा करता हू मै...


हर सांस मे तुम्हे याद करते है, तो हिचकियो से बेजार होगे तुम 
कम्बख्त! हमे हिचकी नही आती इस बात से बेकरार है हम...


कुबूल है.....
मारे जाने के हि काबिल थे हम, तुम्हारे गुन्हेगार जो बन बैठे
पर मारने का तरीका जो अपनाया तुमने, गम उस बात का ज्यादा है...


यू बीच सफर मे अकेला छोडना था तो साथ आये हि क्यो?
दिल तोडना था,तो उसे खुशियो से गुदगुदाया हि क्यो?...


तुम साथ नही, तो बहोत अकेला हो गया हू मै,
बिन राधा, भक्तो कि भीड मे फसा शाम हू मै...


और क्या बताये हाल-ए-जिंदगी? बस यही कि....

ये माहोल अब कुछ अनजाना सा लगता है,
कारवा तेरे बिन अब सुना सा लगता है.....




N.B.:- Dedicated to Zishan Syed & Shriharsh Khedkar.... My mentors in these sorts of matters :-p




3 comments:

  1. I'm almost illiterate when it comes to rate poems but am of the opinion that they are very difficult to write. Its indeed laudable that you attempted.Bravo!! :)

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  2. "Haal yaha b kuch alag nahi hai ye mere DOST,
    Hum iss dard ko bakhubhi janate hai !
    Jab b uthaye ye hath Usake saamane,
    Tere hi waapasee ki DUA mangate hai!!!"

    ......4m Zishaan & Shriharsh.....

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  3. accha likha hai aapne majnu-e-nakaamyaab saahab...yuh hi gham ke taalaab me doobe huye rahe toh ghalib ban jaaoge janaab...:-)...agar maan le ke ye aapka apnaa tajurba nahi hai tab bhi ye baat kehni padegi ke mehsoos karke likhte ho aap...yeh aapki khaasiyat...

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